Pata Ek Khoye Hue Khazane Ka - 1 in Hindi Adventure Stories by harshad solanki books and stories PDF | पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 1

Featured Books
Categories
Share

पता, एक खोये हुए खज़ाने का - 1

राजू के हाथों में आज उसके पिताजी का सामान शिफ्ट करते वक्त एक छोटी, मगर बहुत पुराणी डायरी आई थी. उसने वह डायरी पर नजर डाली. उस पर हाथ से बनी हुई, मगर कोई रहस्यमय आकृतियाँ थी. राजू की आँखें अचरज से फ़ैल गई. वह कोई स्थान के नक्से जैसी लगती थी. उसने याद करने की कोशिश की. वह किसी देश का नक्सा तो नहीं लगता था! फिर वह किस भू प्रदेश का नक्सा होगा? वह मन ही मन सोचने लगा.
उसके पिताजी को चल बसे आज पंद्रह दिन गुजर गए थे. पिछली बरसात में उनका घर बहुत रिसा था; अथ, उनकी मम्मी और उसने इस बरसात से पहले ही अपने घर की मरम्मत करवाना तै कर लिया था. इसलिए पिताजी के क्रिया कांड के बाद तुरंत राजू ने एक किराए का नया मकान देखकर सामान शिफ्ट करना शुरू कर दिया. तभी उनके हाथों यह डायरी लगी.
अंगूठे से उस डायरी के पन्नों को फिराकर एक नजर उसने देखा, फिर उसे अपनी जेब में रख लिया. यूँ तो उसने हलकी सी ही नजर डाली थी, पर उसके दिमाग को किसी बड़े राज़ की भनक लग गई.
साम होने को आई थी. मई की गर्मियां अपने उफान पर थी. राजू प्रस्वेद से लथपथ होकर जरा फ्रेश होने के इरादे से बाथरूम की और चला.
"मम्मी, ज़रा चाय बनाना!" बाथरूम से निकलते हुए उसने मम्मी को आवाज दी. फिर वह उस डायरी को हाथ में लिए, चाय का इन्तेजार करते हुए पढ़ने लगा.
उसके पापा ने नोट किया था. शुरुआत में कुछ दिनचर्या के नोट्स थे. मगर आगे जो कुछ था उसने राजू के दिमाग को घुमा दिया.
दिनांक १८ जुलाई १९७९; दादाजी के वह नौकर का आंशिक परिचय मिल गया है जो हमें उस जगह तक पहुँचाएगा. वह उसके बारें में सब कुछ जानता है. नाम नानु. जेन्गा बेत (काल्पनिक बेत) पर रहता है.
दिनांक २७ अगष्ट १९७९; वह नक्सा, चाबी और तस्वीर मिल गई है.
दिनांक २१ फरवरी १९८०; चन्द्रभाल टंन्देल से एक बोत की व्यवस्था कर ली गई है.
दिनांक १ मार्च १९८०; किराए पर बोत के एक मशीन की व्यवस्था हो गई.
दिनांक ३ मार्च १९८०; सफर के लिए जरूरी साधन कम्पास, ओक्तंत, शिप लोग की व्यवस्था हो गई हैं.
दिनांक ७ मार्च १९८०; बोत की मरम्मत के लिए जरूरी औजार प्राप्त कर लिए गए हैं.
दिनांक २६ मार्च १९८०; जरूरी बंदूकों, गोला बारूद और अन्य हथियार आ पहुंचा हैं.
दिनांक ९ अप्रैल १९८०; रसोई का सामान और तीन माह के लिए आवश्यक भोजन सामग्री की व्यवस्था हो गई हैं.
दिनांक २७ अप्रैल १९८०; कल सुबह सब को समुद्र में उठने वाले संभावित तूफ़ान की वजह से अभियान विलम्ब में पड़ने के बारें में सूचित करना हैं. और नई तारीख तै करनी है.
यह सब पढ़ कर उसे आश्चर्य हो रहा था. उनकी समझ में यह सब नहीं आ रहा था! क्यूंकि वह जहां तक जानता था, उसके पापा ने कभी कोई लम्बी समुद्री सफर नहीं की थी. अगर की होती तो उसके पापा ने उसे जरूर बताया होता. यह जरूर कोई छिपा हुआ बड़ा राज़ है.
आगे भी बहुत कुछ था पर इतने में ही उनकी मम्मी हाथों में चाय के प्याले लिए आ पहुंची.
"क्या हुआ बेटा? क्या सोच रहा है? क्या है वह?" उसकी मम्मी ने चाय का प्याला बगल में रखते हुए सवाल किए.
"क्या मम्मी! पापा कभी लम्बी समुद्री सफर पर गए थे?" उसने पूछा.
"नहीं! क्यूँ? उसने कभी ऐसा बताया नहीं था!" उसकी मम्मी ने आश्चर्य प्रगट किया.
राजू ने वह डायरी अपनी मम्मी के हाथों में रख दी. और चाय का प्याला उठाकर मम्मी की और टकटकी लगाए देखने लगा.
उसकी मम्मी ने डायरी पढ़ना शुरू किया. उसकी आंखे फट गई!
इसमें तो समुद्री सफर पर चलने की सारी तैयारी करने की बात है! पर उसने कभी बताया नही|! और ये सब तवारीख तो हमारी सादी से पहले की है!" मम्मी बोली.
"और ये क्या? बंदूकें और गोला बारूद!? वें कोई लड़ाई पर गए थे क्या?" विस्मय में पड़ती हुई मम्मी बोली.
"ये लोग जरूर कोई ख़ास मकसद से ही समुद्र में गए होंगे. वर्ना गोलाबारूद और बंदूकें लेकर घूमने थोड़े ही कोई जाता हैं ?" मम्मी ने कोई अज्ञात रहस्य की और संकेत किया.
"और ये हेंड राइतींग तो तुम्हारे पापा की ही है!"
"पर हाँ, तुम्हारे दादा और उनके पिताजी जरूर बड़े नाविक हुआ करते थे. और उसने अपनी सारी जवानी समुद्र में ही बिताई थी. पर तुम्हारे दादाजी ने तुम्हारे पापा को कभी भी समुद्र में जाने की सलाह नहीं दी. और तुम्हारे पापा अगर समुद्र की सफर पर कभी गए भी थे तो फिर हमसे छिपाया क्यूँ? छिपाने की वजह क्या हो सकती है?" मम्मी शिकायती अंदाज में बोले जा रही थी.
उस डायरी में आगे भी बहुत कुछ था मगर दोनों के पल्ले नहीं पड़ रहा था. कुछ आंकड़ो और शब्दों की गुथ्थियाँ थी. जो दोनों की समझ से परे थी.
आगे था.
दिनांक २ जून १९८०; परसों सफर पर चलने के बारें में अंतिम तैयारी के लिए मुलाकात करनी है. और ११ जून को हमें सफर पर निकल जाना है.
पीछे के पन्नों का कोई अता पता नहीं था; सो,, दोनों जुन्ज्ला उठे.
"आगे के पन्ने कहाँ है?" मम्मी ने पूछा.
"पता नहीं." राजू ने उत्तर दिया.
"उसमे कौन से नक्से की बात की गई है? क्या आप को पता है मम्मी?" राजू ने पूछा.
"नहीं! मुझे तो कभी किसी ने कुछ बताया ही नहीं." मम्मी कुछ याद करते हुए बोली.
"और ये जो पत्र लिख कर यात्रा टालने की बात की जा रही है वें कौन होंगे? मम्मी ने सवाल किया.
"मुझे लगता है पापा के फ्रेंड हरीचाचा, कृष्णा अंकल, संकर्चाचा या लखन अंकल में से कोई हो सकते हैं!" राजू कुछ सोचते हुए बोला.
"इन लोगों को पूछना चाहिए!" राजू ने दोहराया.
"हं, जाने दो! अब हमें इन सब बातों से क्या मतलब." कहते हुए मम्मी डायरी पटक कर चाय के खाली प्याले लेकर चली गई.
राजू भी फिर से खड़ा हुआ और सामान शिफ्ट करने में लग गया. पर उसके दिमाग ने उस सफर और नक्से का पीछा नहीं छोड़ा. उसके दिमाग में तरह तरह के कई प्रश्न पैदा हो रहे थे.
आखिर पापा ने ऐसी कोई सफर की थी तो मम्मी या उसे कभी कुछ बताया क्यूँ नहीं? वह नक्शा किस जगह का होगा? अब वह नक्शा कहाँ है? पापा के साथ सफर पर चलनेवाले वें सारें लोग कौन होंगे? पापा के दादाजी का वह नौकर कौन है? और वह क्या जानता है? आखिर उस यात्रा का क्या हुआ?
काम करते करते वह उस खोये हुए पन्नों का भी खास खयाल करता जाता था. वह हर एक चीज को बारीकी से देखता जा रहा था. आखिर वे पन्ने गए कहाँ? अगर वे मिल जाए तो कुछ बात बने. वह मन में ही बुदबुदा रहा था. आखिर में उसने कृष्णा अंकल से कुछ जानकारी प्राप्त करने की सोची.
यहाँ हम अपनी कहानी के मुख्य पात्रों का संक्षिप्त परिचय प्राप्त कर लेते हैं.
राजू के पापा हसमुख चौहान और कृष्णा शेरावत दोनों बहुत ही खास दोस्त थे. दोनों की पढ़ाई एक साथ ही हुई थी. उनके यूँ तो कई दोस्त थे, पर वे दोनों अपनी छोटी से छोटी बात सायद किसी को न बताए, पर एक दूसरे को अवश्य बताया करते थे.
हसमुख के पिताजी परबत एक जानेमाने नाविक का बेटा हुआ करता था. वह खुद भी एक अच्छा नाविक था. पर उसने अपने बेटे हसमुख को इजनेर बनाकर समुद्र से दूर ही रखा.
हसमुख एक जानीमानी कंपनी में इजनेर के रूप में काम करता था और दो माह पूर्व ही निवृत्त हुआ था.
जब की कृष्णा के पिताजी व्यापारी थे. कृष्णा ने भी अपने पिताजी के व्यवसाय को अपनाया था और दस साल पूर्व अपने परिवार सहित UK में जा बसा था. हर एक दो साल में कृष्णा अपने परिवार सहित इंडिया आता था तब दोनों परिवार करीब करीब साथ ही रहते थे. कहीं घूमने जाना हो तब भी दोनों परिवार साथ ही चलते थे.
कृष्णा को दो बेटियाँ थी जेसिका और याना. जेसिका Biological anthropology में आदिवासियों पर PHD कर रही थी और याना अभी फर्धर एज्युकेशन (हाई स्कूल) की छात्रा थी. ये दोनों बहिनों और राजू में बचपन से गहरी दोस्ती हो गई थी.
राजू अपने मम्मी पापा की एक लौटी संतान थी. उसने इंजीनियरिंग समाप्त करने के बाद इसी साल सी कप्तान की तालीम ली थी. और अब जॉब के लिए अप्लाई कर रहा था.
साम को राजू ने फुर्सत पा कर उनके पापा के खास मित्र कृष्णा अंकल, जो अब UK में बस गए थे, उन्हें फोन मिलाया. कृष्णा हसमुख के देहांत की वजह से इंडिया आया हुआ था और अभी तीन दिन पूर्व ही UK लौटा था.
"हेल्लो बेटा! कैसे हो?" सामने से आवाज आई.
"बढ़िया... वहां सब के हाल कैसे हैं?" राजू ने पूछा.
"यहाँ सब ओके है. बताओ तुम्हारी मम्मी का हाल तो ठीक है न?" अंकल बोले.
थोड़ी देर इधर उधर की बात की. फिर राजू ने मूल बात छेड़ी.
"अंकल, आप भी पापा के साथ उस सफर पर गए थे न?" राजू ने थोड़ा तेड़ा सवाल किया.
"कौन सी सफर?" अंकल ने अनभिज्ञता प्रगट की.
"वहीँ, १९८० वाली..." राजू ने बताया.
कुछ देर चुप्पी रही. फिर आवाज आई.
"नहीं! में तो ऐसी कोई सफर पर नहीं गया था!" अंकल ने अनजान बनते हुए कहा.
पर राजू ने कृष्णा अंकल की आवाज़ में हलकी लड़खड़ाहट महसूस की.
"फिर पापा के साथ कौन कौन गए थे? क्या आप को पता है?" राजू ने फिर सवाल दागा.
"पर तुम यह सब क्या पूछ रहे हो? तुम्हारे पापा कहीं घूमने गए होंगे! आखिर वह खारवा का ही तो बेटा था. पर इन सब बातों का अब क्या मतलब?" अंकल ने थोड़े जुन्जलाते हुए कहा.
"बस, ऐसे ही. सिर्फ उत्सुक्तावश पूछ रहा हूँ." राजू ने बात टालते हुए कहा.
फिर थोड़ी राजू के जॉब सम्बन्धी बातें हुई और कोल डिस्कनेक्ट हो गया.
राजू निराश हो कर बैठा. सोचने लगा; या तो अंकल बात छिपा रहे है या फिर वें सचमुच में कुछ नहीं जानते. पर इस दोनों स्थिति में उसके हाथ कुछ नहीं लगने वाला हैं.
रात्रि भोजन के बाद राजू टेलिविज़न पर मूवी देखते हुए बैठा था की उसको अपने मोबाइल की याद आ गई. आज उसने सुबह से कोई वोत्सेप मेसेज चेक ही नहीं किये थे. उसने अपना मोबाइल उठाया. देखा, कृष्णा अंकल की बड़ी बेटी जेसिका का मेसेज था.
"क्या बात है? तुम्हारी पापा के साथ बात हो रही थी तब मैं वहीँ बैठी हुई थी! तुम्हारी बात सुनकर पापा गभरा गए थे. ऐसी क्या बात हो गई?"
क्रमशः.
अगले हफ्ते कहानी जारी रहेगी...
कृष्णा अंकल गभरा क्यूँ गए थे? उसके गभराने की वजह क्या हो सकती है? क्या वह कुछ जानता है? और जानता है तो छिपा क्यूँ रहे है?
इन सब सवालों के उत्तर पाने के लिए पढ़ते रहीए.